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वागळेंच्या TV9 मधील गच्छंतीचं सत्य – खुद्द ह्या गच्छंतीस कारणीभूत असणाऱ्या व्यक्तीच्या लेखणीतून!

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आजच्या मराठी पत्रकारितेतील सर्वात अनुभवी आणि ज्ञानी लोकांपैकी एक म्हणजे निखिल वागळे. तुम्हाला निखिल वागळेंची मतं पटो ना पटो, त्यांचा चर्चांमधील वावर आवडो ना आवडो – he is a very intelligent journalist – हे मान्य करावंच लागेल.

माझ्या परिचयातील एक बऱ्यापैकी अनुभवी पत्रकार एका वाक्यात वागळेंबद्दल फार सुरेख बोलतात –

माझं जितकं वय आहे, तितक्या वर्षांचा वागळेंचा पत्रकारितेचा अनुभव आहे!

–  बरं हे पत्रकार मित्र वागळेंशी अनेकदा असहमत असणारे आहेत! म्हणजेच, वागळेंची मतं, त्यांची पद्धत आवडत नाही – पण त्यांचा अनुभव, ज्ञान वादातीत आहे ह्यावर शिक्कामोर्तबच होतं!

वागळेंचा  शो “सडेतोड” तडकाफडकी बंद करण्यात आला आणि वागळेंची TV9 ह्या चॅनलमधून गच्छन्ती झाली.

ही बातमी खुद्द वागळेंनी तमाम मराठी जनतेला (आणि दिल्लीतील इंग्रजी पत्रकारांना) ट्विटरवर दिली.

 

 

आणि मग साहजिकच, दिल्लीतील पत्रकार मंडळींनी वागळेंच्या मदतीस धाव घेतली…

 

 

वागळे, त्यांच्या स्वभावानुसार, फक्त बातमी सांगून थांबले नाहीत. त्यांनी सध्याच्या “सब मिले हुए है जी” परिस्थितीवर चिंतन आणि भविष्यातील पत्रकारितेवर चिंता व्यक्त केली —

 

 

 

थोडक्यात, मोदी सरकारने वागळेंना मुद्दाम काढून टाकलं – असा वागळेंचा पक्का ग्रह आहे. त्यात भाजप च्या एका नेत्याने TV9 विकत घेण्याची प्रक्रिया सुरु केल्याची बातमी देखील आहेच. त्यामुळे वेगळेंच्या ह्या म्हणण्यात तथ्य वाटतं.

आम्हा सर्वांना झाल्या प्रकरणाचं फार-फार वाईट वाटलं. पण – काल हे चित्र बदललं. एकदम.

कारण – वागळेंसोबत नेमकं काय घडलं – हे काल एका अश्या व्यक्तीने फेसबुकवर उघड केलं, जी व्यक्ती खुद्द ह्या प्रकरणात सक्रिय सहभागी होती.

ह्या व्यक्तीचं नाव आहे – विनोद कापरी. हे दिल्लीत असतात आणि TV9 चे मालक आणि CEO रविप्रकाश ह्यांचे ते मित्र आहेत.

विनोदजींनी जी हिंदी पोस्ट लिहिली – ती पुढे देत आहोत. त्या खाली ह्या पोस्टचा मराठी सारांश देत आहोतच. पण शक्य असेल तर संपूर्ण हिंदी पोस्ट वाचाच.

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मोदी के नाम पर शहीद बनने वालों…

कुछ मित्रों को मेरी इस पोस्ट पर आपत्ति हो सकती है पर नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर कैसे कैसे खेल हो रहे हैं और कैसे लोग खुद को ज़बरन शहीद बनाने की कोशिश कर रहे हैं – ये सामने लाने के लिए इस पोस्ट को लिखना बहुत ज़रूरी है।

ताज़ा मिसाल है निखिल वागले की TV9 मराठी से विदाई की। वागले जी का मैं तब से प्रशंसक हूँ, जब मैं पत्रकारिता में आया भी नहीं था। 90 का दशक रहा होगा।

मैं कॉलेज में था और इसी दौरान निखिल वागले और उनके अखबार पर शिवसेना के गुंडों ने हमला किया था। लेकिन वागले डरे नहीं। तब से मै वागले को एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार समझता रहा।

लेकिन मेरा ये भ्रम अब जाकर टूटा है तकरीबन 25-26 साल के बाद।

मैं सबकुछ बर्दाश्त कर सकता हूँ। पर कोरे झूठ के नाम पर सहानुभूति बटोरने को सहन नहीं किया जा सकता।

आप सब जानते होंगे कि वागले की हाल ही में TV9 मराठी से विदाई हुई है और इस विदाई को उन्होने जिस तरह से बीजेपी और मोदी से जोड़कर प्रचारित किया, वो हैरान तो करता ही है, साथ ही अंदर तक दुख पहुँचाता है जब आप अपने ही एक हीरों और आदर्श को अपनी आँखों के सामने धराशायी होते देखते हैं।

सच ये है कि वागले की TV9 मराठी से विदाई और उसमें मोदी- बीजेपी की भूमिका की वागले जी की फैलाई कहानी ना सिर्फ पूरी तरह झूठी है बल्कि मनगढ़ंत भी है।

ये सब मैं इतने दावे से इसलिए कर रहा हूँ कि मुझे ना केवल सबकुछ पता है , बल्कि इसमें मेरी पूरी भूमिका भी है। तो सच कुछ यों है।

मेरा एक 21 साल पुराना दोस्त है रविप्रकाश, जो कि TV9 group का CEO भी है और promoter भी। मई के महीने में रवि ने मुझसे कहा कि यार विनोद तुम मुंबई आते जाते रहते हो, ज़रा कुछ वक्त निकाल कर TV9 मराठी की टीम से मिल लो और देख लो कि चैनल में क्या दिक़्क़त है।

सात आठ साल हो गए – कुछ बात बन नहीं रही। रवि पुराना दोस्त है, मेहनती है, जुझारू है – तो मना नहीं कर पाया । सोचा कि फिल्म के काम के दौरान जब समय मिलेगा तो जाऊँगा। इसी दौरान जून में धाकड़ रिपोर्टर रहे उमेश कुमावत ने बतौर मैनेजिंग एडिटर join कर लिया। उमेश से मैने पूरे चैनल की FPC ( fixed Programming chart ) और पिछले तीन चार हफ़्तों की रेटिंग माँगी।

रेटिंग का अध्ययन करके पता चला कि चैनल लगातार चार नंबर पर है, तकरीबन हर शो की रेटिंग खराब है और सबसे बुरा हाल है निखिल वागले के शो Sade Tod का। मैंने टीम के साथ बैठकर नई FPC को तैयार किया और सुझाव दिया कि वागले के शो को रात नौ से दस बजे के बजाय आप शाम पाँच से छह बजे करो। और नई FPC 21 जून से लागू करो।

21 जून से नई FPC लागू हो गई और दो ही हफ़्ते में चैनल नंबर चार से नंबर तीन पर आ गया। FPC में सिर्फ एक ही बदलाव नहीं हो पाया और वो था निखिल वागले का शो।

वागले जी ने 19 जून को उमेश से कहा कि उन्हें एक महीने का और वक्त दिया जाए, वो शो को और बेहतर और आक्रामक बना रहे है। वागले जी का सम्मान करते हुए उन्हें एक महीने का और समय दिया गया। पर सुधार के बजाय रेटिंग और गिरती रही।

इतना बुरा हाल कि आखिरी के आठ हफ़्तों में पाँच हफ़्ते तो वागले जी का शो Top 100 में भी नहीं आ पाया ( pls check BARC ratings Marathi News Channels week 19- week 28) ।

इसके बावजूद उमेश ने ठीक एक महीने बाद 19 July को उनसे फिर प्यार से कहा कि अब आपके शो की टाइमिंग बदलनी ही होगी लेकिन वागले जी ने फ़रमान सुना दिया कि मैं शो करूँगा तो सिर्फ रात के नौ बजे, वर्ना नहीं करूँगा और अगले दिन हम क्या देखते हैं कि वागले जी Twitter में कूद पड़े कि :

“देखिए मेरे साथ क्या नाइंसाफ़ी हो गई , TV9 ने अचानक मेरा शो बंद कर दिया..मेरे शो को सेंसर कर दिया गया”

और फिर देखते ही देखते तमाम “liberal और Secular” पत्रकारों की पूरी बटालियन Twitter में मोर्चा लेकर खड़ी हो गई कि देखिए बीजेपी और मोदी ने एक और निष्पक्ष और निडर आवाज़ को चुप करा दिया।

कुछ English websites में ख़बरें भी छपने लगीं और इन सबके बीच आदरणीय वागले जी सच जानते हुए भी बहुत भोले बनकर  “आपके सहयोग के लिए धन्यवाद ” और ” ये जंग जारी रहेगी ” “सेंसरशिप से लड़ेंगे ” जैसे tweet करते रहे।

दूर से बैठा मैं ये सब देख रहा था और बेहद दुखी था कि कैसे मेरा एक हीरो मेरे ही सामने दम तोड़ रहा है। वागले के शो के बंद होने का दूर दूर तक ना मोदी से वास्ता था और ना बीजेपी से। पर दो दिन में Twitter पर ऐसा माहौल बना दिया गया कि :

“मोदी ने एक बार फिर लोकतंत्र की हत्या कर दी। मोदी हर उस आवाज़ को दबा रहे हैं जो मोदी के विरोध में उठती है। “

देखिए बाकी आवाज़ों के बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मैं जानता नहीं पर वागले जी के शो पर मैं पूरे विश्वास और दावे के साथ लिख रहा हूँ और डंके की चोट पर कह रहा हूँ कि शो बंद होने का एकमात्र कारण मैं था और मैं भी इसलिए क्योंकि मेरी जगह कोई भी व्यक्ति बदहाल चल रहे शो को या तो बंद करने का सुझाव देता या टाइमिंग बदलने की बात करता। जो मैंने किया। और मुझे खुलेआम ये मानने में कोई संकोच नहीं है।

हो सकता है कि इस पोस्ट के बाद कुछ लोग मुझे कहें कि मैं भी मोदी की गोद में जाकर बैठ गया। कहने वाले कहते रहे, मुझे अपना सच पता है और वो मै लिखता रहूँगा।

अंत में…

वागले जी, आपने झूठ फैलाकर और झूठ के नाम पर खुद को शहीद बनाकर अच्छा नहीं किया। आपने मेरा एक हीरो मुझ से छीन लिया। Twitter पर मैं आपको 5-6 साल से फ़ॉलो कर रहा हूँ।

आपके tweets को आँख बंद करके RT करता रहा, यही सोचकर कि बाल ठाकरे से लड़ने वाला आदमी निडर और निष्पक्ष ही होगा लेकिन अब खुद को प्रासंगिक बनाने के लिए जिस तरह आप झूठ का सहारा ले रहे हैं, वो व्यक्ति मेरा हीरो नहीं हो सकता।

प्लीज़ मोदी के कंधे पर बंदूक़ रखकर खुद पर ही गोली चलाना बंद कीजिए । कुछ दिन के लिए आप शहीद ज़रूर बन जाओगे लेकिन मेरे जैसे आपको चाहने वालों का जब भ्रम टूटेगा तो आपकी बची खुची विश्वसनीयता भी ख़त्म हो जाएगी।

PS
Apologies for tagging.
Feel free to remove tag.

नोट :

इस पोस्ट के साथ कई tweets भी संलग्न हैं और TV9 मराठी की वो मेल भी संलग्न है, जिसमें वागले जी को बताया गया था कि खराब रेटिंग की वजह से उनके शो की सिर्फ टाइमिंग बदली जा रही है, ना कि शो बंद किया जा रहा है।

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वरील पोस्टचा मराठी सारांश :

वागळेंच्या सडेतोड मुळे TRP “वाढली” होती हा प्रचार अक्षरशः खोटा आहे. उलट त्या शो मुळे टीआरपी कमी झाली होती. होय – वागळेंचा सडेतोड हा सर्वात कमी टीआरपी चा शो होता. त्यामुळे शोची – रात्री ९ ते १० – ही वेळ बदलून संध्याकाळी ५ ते ६ करावी – हा आणि असेच इतरही अनेक बदल सुचवले गेले.

सुचवलेले सर्व बदल अमलात आले – फक्त सडेतोड चा वेळ बदल सोडून. हे सर्व बदल २१ जून पासून अमलात येणार होते आणि १९ जूनला वागळेंनी एका महिन्याची मुदत मागितली. “एका महिन्यात सुधारणा दाखवतो, नाही जमलं तर वेळ बदला” असं म्हणाले. वागळेंचा मान ठेऊन एक महिना मुदत देण्यात आली.

परंतु पुढील महिन्यात परिस्थिती आणखी बिघडली. इतकी, की सडेतोड हा शो टॉप १०० मध्येपण नव्हता. म्हणून वागळेंना १९ जुलै रोजी वेळ बदला बद्दल सांगण्यात आलं. परंतु वागळे चिडून, ओरडून म्हणाले की ते शो करतील तर ९ ते १० च! आणि त्यांनी २० तारखेला ट्विटरवर सरळ घोषणाच केली की त्यांचा शो “बंद” करण्यात आला आहे!

हा आहे वागळेंना पाठवलेला ईमेल :

 

 

तर मंडळी, हे असं आहे!

अर्थात, ह्या सत्य खरंच किती आहे हे वागळेंनी ह्यावर स्पष्टीकरण दिल्यावरच कळू शकेल.

फेसबुकवर आणि ट्विटरवर “सत्य लवकरच समोर येईल” असं म्हणणाऱ्या वागळेंनी ह्यावर सभ्य आणि संयत भाषेत उत्तर द्यायला हवं.

वागळे…बोला वागळे, बोला…!

नेशन वॉण्टस टू नो!

(इच्छुकांसाठी : विनोद कापरी ह्यांची फेसबुक पोस्ट )

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